1.Malaria (मलेरिया)
मलेरिया या दुर्वात एक वाहक-जनित संक्रामक रोग है जो प्रोटोज़ोआ परजीवी द्वारा फैलता है। यह मुख्य रूप से अमेरिका, एशिया और अफ्रीका महाद्वीपों के उष्ण तथा उपोष्ण कटिबंधी क्षेत्रों में फैला हुआ है। प्रत्येक वर्ष यह ५१.५ करोड़ लोगों को प्रभावित करता है तथा १० से ३० लाख लोगों की मृत्यु का कारण बनता है जिनमें से अधिकतर उप-सहारा अफ्रीका के युवा बच्चे होते हैं। मलेरिया को आमतौर पर गरीबी से जोड़ कर देखा जाता है किंतु यह खुद अपने आप में गरीबी का कारण है तथा आर्थिक विकास का प्रमुख अवरोधक है।

  2.Encephalitis (मस्तिष्क ज्वर)
मस्तिष्क ज्वर मस्तिष्क तथा मेस्र्रज्जु को ढंकने वाली सुरक्षात्मक झिल्लियों में होने वाली सूजन होती है तथा सामूहिक रूप से इसे मेनिन्जाइटिस कहा जाता है। यह सूजन वायरस, बैक्टेरिया तथा अन्य सूक्ष्मजीवों से संक्रमण के कारण हो सकती है साथ ही सामान्यतः कम मामलों में कुछ दवाइयों के द्वारा भी हो सकती है। इस सूजन के मस्तिष्क तथा मेस्र्रज्जु के समीप होने के कारण मेनिन्जाइटिस जानलेवा हो सकती है; तथा इसीलिए इस स्थिति को चिकित्सकीय आपात-स्थिति के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

     3.Dengue (डेंगू)
डेंगू बुख़ार एक संक्रमण है जो डेंगू वायरस के कारण होता है। डेंगू का इलाज समय पर करना बहुत जरुरी होता हैं. मच्छर डेंगू वायरस को संचरित करते (या फैलाते) हैं। डेंगू बुख़ार को “हड्डीतोड़ बुख़ार” के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इससे पीड़ित लोगों को इतना अधिक दर्द हो सकता है कि जैसे उनकी हड्डियां टूट गयी हों। डेंगू बुख़ार के कुछ लक्षणों में बुखार; सिरदर्द; त्वचा पर चेचक जैसे लाल चकत्ते तथा मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द शामिल हैं। कुछ लोगों में, डेंगू बुख़ार एक या दो ऐसे रूपों में हो सकता है जो जीवन के लिये खतरा हो सकते हैं। पहला, डेंगू रक्तस्रावी बुख़ार है, जिसके कारण रक्त वाहिकाओं (रक्त ले जाने वाली नलिकाएं), में रक्तस्राव या रिसाव होता है तथा रक्त प्लेटलेट्स  (जिनके कारण रक्त जमता है) का स्तर कम होता है। दूसरा डेंगू शॉक सिंड्रोम है, जिससे खतरनाक रूप से निम्न रक्तचाप होता है।

   4.Filariasis (फाइलेरिया)
फाइलेरिया रोग, जिसे हाथी पांव या फील पांव भी कहते हैं,  में अक्सर हाथ या पैर बहुत ज्यादा सूज जाते हैं। इसके अलावा फाइलेरिया रोग से पीड़ित व्यक्ति के कभी हाथ, कभी अंडकोष, कभी स्तन आदि या कभी अन्य अंग भी सूज सकते हैं। आम बोलचाल की भाषा में हाथीपांव  भी कहा जाता है।
फाइलेरिया रोग एक कृमिवाली बीमारी है। यह कृमि  लसीका तंत्र  की नलियों में होते हैं और उन्हें बंद कर देते हैं। फाइलेरिया रोग, फाइलेरिया बैंक्रॉफ्टी  नामक विशेष प्रकार के कृमियों द्वारा होता है और इसका प्रसार क्यूलेक्स  नामक विशेष प्रकार के मच्छरों के काटने से होता है।
इस कृमि का स्थायी स्थान लसीका वाहिनियाँ हैं, परंतु ये निश्चित समय पर, विशेषतः रात्रि में रक्त में प्रवेश कर शरीर के अन्य अंगों में फैलते हैं।
कभी कभी ये ज्वर तथा नसों में सूजन उत्पन्न कर देते हैं। यह सूजन घटती बढ़ती रहती है, परंतु जब ये कृमि लसीका तंत्र की नलियों के अंदर मर जाते हैं, तब लसीकावाहिनियों का मार्ग सदा के लिए बंद हो जाता है और उस स्थान की त्वचा मोटी तथा कड़ी  हो जाती है।
लसीका वाहिनियों के मार्ग बंद हो जाने पर कोई भी औषधि  अवरुद्ध लसीकामार्ग को नही खोल सकती। कुछ रोगियों में ऑपरेशन  द्वारा लसीकावाहिनी का नया मार्ग बनाया जा सकता है।

    5.Chikungunya (चिकनगुनिया)
चिकनगुनिया लम्बें समय तक चलने वाला जोडों का रोग है जिसमें जोडों मे भारी दर्द होता है। इस रोग का उग्र चरण तो मात्र २ से ५ दिन के लिये चलता है किंतु जोडों का दर्द महीनों या हफ्तों तक तो बना ही रहता है।
चिकनगुनिया विषाणु एक अर्बोविषाणु है जिसे अल्फाविषाणुपरिवार का माना जाता है। यह मानव में एडिस मच्छर के काटने से प्रवेश करता है। यह विषाणु ठीक उसी लक्षण वाली बीमारी पैदा करता है जिस प्रकार की स्थिति डेंगू रोग मे होती है।